डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पुण्य तिथि 28 फरवरी पर विशेष
Rajesh Sharma
भारत के राष्ट्रपति भवन में एक नियम था कि वहां काम करने वाले कर्मचारियों को भीतर भोजन नहीं मिल सकता था। एक दिन राष्ट्रपति के ड्राइवर को भोजन के लिए बाहर गए। जब डॉ.राजेंद्र प्रसाद को यह पता चला, तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि सभी कर्मचारियों को राष्ट्रपति भवन में ही भोजन दिया जाए।उनका मानना था कि यदि वे खुद आराम से खा सकते हैं, तो उनके कर्मचारियों को भी वही सुविधा मिलनी चाहिए।
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भारत के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। वे एक पारंपरिक कायस्थ परिवार से थे, जहां शिक्षा का महत्व था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा में हुई और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वे इतने प्रतिभाशाली थे कि एंट्रेंस परीक्षा में उन्हें पहली रैंक मिली। आगे चलकर उन्होंने कानून की पढ़ाई की और एक प्रतिष्ठित वकील बने।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी 1963 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने अपना आखिरी समय साधारण जीवन जीते हुए पटना के सदाकत आश्रम में बिताया।
राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने राजनीति से दूर रहकर समाजसेवा में खुद को समर्पित कर दिया। उनका जीवन भारतीय मूल्यों, सादगी और कर्तव्यपरायणता की मिसाल है। उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी पुण्य तिथि पर हम उनके जीवन, राजनीतिक करियर, परिवार और कुछ रोचक संस्मरणों पर नजर डालते हैं।
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स्वतंत्रता संग्राम और राजनीतिक करियर
डॉ. प्रसाद का झुकाव शुरू से ही राष्ट्रवादी गतिविधियों की ओर था। 1917 में वे महात्मा गांधी से प्रभावित हुए और उनकी शिक्षाओं को अपनाने लगे। उन्होंने 1920 के असहयोग आंदोलन में अपनी वकालत छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भूमिका: वे कई बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1934, 1939 और 1947 में उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया।
संविधान सभा में योगदान: वे भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष बने और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राष्ट्रपति पद: 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के बाद वे देश के पहले राष्ट्रपति बने। वे 12 साल तक इस पद पर रहे और दो बार निर्वाचित हुए। उनका कार्यकाल 1950 से 1962 तक चला।

परिवार और निजी जीवन
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का विवाह बहुत कम उम्र में राजवंशी देवी से हुआ था। वे एक पारंपरिक और साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। अपने परिवार और समाज के प्रति उनका गहरा लगाव था।
सादगी और ईमानदारी की मिसाल
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की सादगी और ईमानदारी के कई किस्से प्रसिद्ध हैं। वे राष्ट्रपति बनने के बाद भी आम लोगों की तरह रहते थे और अपने पद को कभी भी दिखावे का साधन नहीं बनाया। एक बार उनकी बहन उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आईं। उनके पास देने के लिए कोई महंगा उपहार नहीं था, तो उन्होंने अपनी छोटी सी बचत से एक साधारण साड़ी खरीदी और अपनी बहन को दी।
गांधीजी से जुड़ा किस्सा
एक बार गांधीजी के साथ किसी आश्रम में रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भोजन के बाद अपनी थाली खुद धो दी। यह देखकर एक व्यक्ति बोला, “आप तो बड़े आदमी हैं, यह काम कोई सेवक भी कर सकता था।” इस पर डॉ. प्रसाद ने कहा, “गांधीजी खुद अपनी थाली धोते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकता?” यह उनकी विनम्रता और सादगी का परिचायक था।
राष्ट्रपति भवन में खुद के कपड़े धोना
राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपनी पुरानी आदतें नहीं भूले। एक बार राष्ट्रपति भवन के एक कर्मचारी ने देखा कि वे अपने कपड़े खुद धो रहे हैं। जब कर्मचारी ने कहा, “सर, यह काम आप क्यों कर रहे हैं? हमारे लिए छोड़ दें।”
डॉ. प्रसाद मुस्कुराकर बोले, “जब मैं खुद अपना काम कर सकता हूं, तो दूसरों पर बोझ क्यों डालूं?”
यह घटना उनकी सादगी और आत्मनिर्भरता का प्रमाण थी।
टूटी हुई कलम और कागज का सम्मान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद हमेशा साधारण जीवन जीते थे और छोटी-छोटी चीजों की भी कद्र करते थे। एक बार किसी बैठक में उन्होंने अपनी जेब से एक पुरानी, टूटी हुई कलम निकाली। किसी ने कहा, “सर, आप तो नए पेन इस्तेमाल कर सकते हैं।”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “जब तक यह लिख रहा है, मैं इसे क्यों बदलूं?”
वे कागज भी बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल करते थे और कभी फालतू खर्च नहीं करते थे।
जनता के राष्ट्रपति
राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे आम लोगों से घुलमिल जाते थे। एक बार बिहार यात्रा के दौरान वे खेतों में गए और किसानों से बातचीत करने लगे। लोग चौंक गए कि देश का राष्ट्रपति बिना किसी तामझाम के उनसे मिलने आया है।
एक किसान ने उनसे पूछा, “बाबूजी, आप भी हमारे जैसे खेतों में घूमते हैं?”
उन्होंने हंसकर जवाब दिया, “मैं भी किसान परिवार से हूं। खेतों की खुशबू मुझे हमेशा खींच लाती है।”
जब उन्होंने सरकारी बंगला छोड़ दिया
राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें पटना में एक सरकारी बंगला रहने के लिए दिया। लेकिन वे वहां नहीं रुके। उन्होंने कहा, “अब मैं एक साधारण नागरिक हूं, मुझे सरकारी बंगले की जरूरत नहीं।”

वे पटना में एक छोटे से घर में रहने लगे और अपना बाकी जीवन सादगी में बिताया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केवल नाम के राष्ट्रपति नहीं थे, बल्कि जनता के सच्चे सेवक थे। वे विलासिता से दूर, सादगी और ईमानदारी की मूर्ति थे। उनके ये संस्मरण हमें बताते हैं कि असली महानता पद या प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि सादगी और सेवा से आती है।
