मेरठ का बांस वाला घर जवाब है — और दिल्ली यूनिवर्सिटी की गोबर वाली दीवार सवाल

Interview

ठेठ देसी अंदाज़: मुखिया गुर्जर का देसी और इको-फ्रेंडली घर और गिर गायों का पालन

Report: Dr. Ravindra Rana/ Rajesh Sharma

जब देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में दीवारों पर गोबर पोतने को “संस्कृति” बताया जाता है, और वहीं मेरठ के एक गांव में एक नेता बांस से घर बनाकर टिकाऊ विकास की मिसाल पेश करता है — तो सवाल उठता है:

क्या परंपरा बस प्रदर्शन के लिए है? या सच में बदलाव के लिए?

दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में हाल ही में गोबर से दीवारों का लेपन किया गया। तर्क ये दिया गया कि इससे वातावरण शुद्ध होगा, और यह हमारी “संस्कृति” है।
ठीक उसी समय, मेरठ में मुखिया गुर्जर ने बिना किसी शोरशराबे के, जमीन पर इको-फ्रेंडली बांस से बना हुआ एक पूरा घर खड़ा कर दिया।


बांस वाला घर: देसी सोच, प्रैक्टिकल अप्रोच

मुखिया गुर्जर का बांस का घर नारे नहीं, नतीजे दिखा रहा है।

न गर्मी की चिंता
न महंगे निर्माण खर्च
न पर्यावरण को नुकसान
और सबसे बड़ी बात — स्थानीय संसाधनों और कारीगरों को काम

यह घर न सिर्फ बन चुका है, बल्कि लोगों को रोजगार, सस्ते आवास और पर्यावरण के लिए एक हल भी दे रहा है।


और दिल्ली में क्या हुआ?

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज में गोबर पोतने को संस्कृति कहा गया।
लेकिन सवाल ये उठा —
क्या ये वही भारत है जो चांद पर पहुंचा, AI में निवेश कर रहा है और स्टार्टअप्स को बढ़ावा दे रहा है?

संस्कृति को अपनाने और उस पर गर्व करने में कोई बुराई नहीं —
लेकिन जब संस्कृति विकास की जगह दिखावे का हथियार बन जाए, तो वहाँ सवाल उठते हैं।


मुखिया गुर्जर का संदेश साफ है:

“देसी होना शर्म की बात नहीं, लेकिन दिखावे में उलझे रहना मूर्खता है। बांस से बना यह घर संस्कृति भी है और समाधान भी।”


देखिए वीडियो:

बांस से बना सस्टेनेबल घर – Mukhiya Gurjar’s Bamboo House (YouTube)


तो अब सोचिए…

दिल्ली की गोबर वाली दीवारें — बस एक सवाल बनकर रह गईं।
और मेरठ का बांस वाला घर — देश को एक जवाब दे गया।

अब फैसला आपको करना है —
आप किस सोच के साथ खड़े हैं?


बांस वाला घर – अब बन चुका है हकीकत!

कोई मॉडल नहीं, कोई डेमो नहीं — अब यह घर तैयार हो चुका है।
पूरा ढांचा बांस से बना है, लेकिन मजबूती ऐसी कि लोग देखकर हैरान हो जाएं।

गर्मियों में ठंडा
बरसात में सुरक्षित
पर्यावरण के लिए वरदान
और खर्च – आम घरों की तुलना में 70% तक कम!

गांव में लोग इसे देखने पहुंच रहे हैं, हाथ से दीवारें छूकर हैरानी जता रहे हैं – “बांस का घर, लेकिन ऐसा पक्का लग रहा है!


मुखिया गुर्जर ने क्यों चुना बांस का रास्ता?

मुखिया गुर्जर का कहना है:

“आज के समय में हर कोई सीमेंट और ईंट की दौड़ में है, लेकिन असली समाधान वो है जो सस्ता हो, टिकाऊ हो और कुदरत के करीब हो। बांस का घर वही समाधान है।”

उनकी इस सोच से कई ग्रामीणों को न सिर्फ आवास की उम्मीद जगी है, बल्कि स्थानीय रोजगार का भी रास्ता खुला है।


वीडियो वायरल हो चुका है!

बांस के इस अनोखे घर का वीडियो यूट्यूब और सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
लोग कमेंट कर रहे हैं –
“ऐसा नेता मिल जाए तो गांव बदल जाए!”
“सरकारी योजना से बेहतर है यह देसी योजना!”

देखिए वीडियो यहाँ:
YouTube Video – Bamboo House by Mukhiya Gurjar


क्या यह है नए भारत का गांव मॉडल?

बांस के इस घर ने एक सवाल खड़ा कर दिया है –
जब एक नेता निजी प्रयास से ऐसा घर खड़ा कर सकता है, तो फिर सरकारी योजनाएं क्यों इतना पीछे हैं?

ये एक नया ग्राम विकास मॉडल बन सकता है
बाढ़, गर्मी और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने का देसी समाधान


अंत में…

मुखिया गुर्जर ने यह साबित कर दिया कि काम बोलता है, और जब नेता जनता के बीच से होकर सोचते हैं, तो विकास सिर्फ भाषणों में नहीं, ज़मीन पर दिखता है।

क्या बाकी नेता इससे कुछ सीखेंगे?

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