राखी के 16 साल के बेटे के लिए यह दुःख और भी गहरा है। जिस दिन उसे स्टेट लेवल खेल कम्पटीशन में हिस्सा लेना था, उसी दिन वह खेल के मैदान में नहीं, अपनी माँ की शोकसभा में बैठा था।
Dr. Ravindra Rana
आज का दिन सिर्फ चौधरी अमन सिंह जी के परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि हर संवेदनशील हृदय के लिए भारी है।
जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी अमन सिंह जी की बेटी राखी चौधरी अब हमारे बीच नहीं रहीं।
सिर्फ 42 वर्ष की उम्र… और 6 अगस्त 2025 को जीवन का सफर खत्म।
पिछले साल अगस्त में कैंसर का पता चला। सर्जरी हुई, कीमोथैरेपी हुई, PET स्कैन के बाद डॉक्टरों ने कहा—”अब कोई रिस्क नहीं है”—लेकिन बीमारी फिर लौट आई। इस बीच उन्होंने बेटे का जन्मदिन मनाया, मुस्कान बरकरार रखी, और शायद भीतर से जानती थीं कि वक्त कम है। पति इंजीनियर हैं, 16 साल का बेटा खिलाड़ी है, और राखी के जाने के बाद अब इस परिवार का संसार बदल गया है।

राखी के 16 साल के बेटे के लिए यह दुःख और भी गहरा है। जिस दिन उसे स्टेट लेवल खेल कम्पटीशन में हिस्सा लेना था, उसी दिन वह खेल के मैदान में नहीं, अपनी माँ की शोकसभा में बैठा था। उम्र के उस पड़ाव पर, जब माँ का साथ और हौसला सबसे बड़ी ताकत होता है, वह अपने जीवन के सबसे बड़े मैच की जगह जीवन के सबसे बड़े दुख का सामना कर रहा था।
कहते हैं, तारीखें कभी-कभी दर्द को पत्थर की लकीर बना देती हैं—
6 अगस्त 2024 को राखी को कैंसर का पता चला, और ठीक दो साल बाद, 6 अगस्त 2025 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
आज उनकी शोकसभा में हजारों लोग पहुंचे। आर्य विद्वान डॉ. वेदप्रकाश आर्य ने वेदों में जीवन और मृत्यु का सार सुनाया। विद्वानों ने कहा—”धरती पर सबका समय निश्चित है। विज्ञान ने बहुत प्रगति की है, लेकिन मृत्यु के सामने उसकी भी सीमाएं हैं।”
मैं वेदों का ज्ञाता नहीं, न ही मेडिकल साइंस का विशेषज्ञ। लेकिन जब कोई यूं चला जाता है, तो दिल के भीतर कई सवाल उठ खड़े होते हैं।

वेस्ट यूपी—एक कैंसर बेल्ट
लखनऊ में एक पुराने पत्रकार मित्र से फोन पर बात हो रही थी। वर्षों तक वे वेस्ट यूपी में रिपोर्टिंग कर चुके हैं। बातचीत हल्के-फुल्के अंदाज में शुरू हुई—मैंने कहा, “कभी आ जाइए, मेरठ की गलियां और पुराना शहर आपका इंतज़ार कर रहे हैं।”
कुछ पल खामोशी रही, फिर उनकी आवाज़ में गंभीरता उतर आई—
“सच कहूं तो अब वहां आने से घबराहट होती है। हवा, पानी, खाना—सब पर भरोसा उठ गया है। दूध में मिलावट, सब्ज़ियों में जहर, मिठाइयों में केमिकल… और इन सबसे पैदा हुआ वो रोग, जिसका नाम सुनते ही मन कांप जाता है—कैंसर।”
उन्होंने कहा, “ये इलाका जैसे मौत की धीमी खुराक ले रहा है। लोग जी रहे हैं, लेकिन भीतर से टूटते जा रहे हैं।”
उनकी बात कोई पत्रकारिता की सनसनी नहीं थी—ये उस आदमी का अनुभव था, जिसने अपनी आंखों से यहां की सच्चाई देखी है।

लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन किसी के कैंसर से जाने की खबर मिलती है।
खेती अब बिना जेनेटिकली मॉडिफाइड बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के सोची भी नहीं जा सकती। विकास के नाम पर लगी फैक्ट्रियां हवा, पानी और अनाज—सबमें ज़हर मिला रही हैं।
नदियां धीरे-धीरे मौत की धारा बन चुकी हैं—क्योंकि उनमें फैक्ट्रियों का जहर बह रहा है।
न चुनावी मुद्दा, न नीति में प्राथमिकता
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यह न चुनाव का मुद्दा है, न नेताओं की प्राथमिकता, और न ही आम बातचीत का हिस्सा।
कोई कह देता है—”अपने लिए तो जैविक खेती कर लीजिए।”

लेकिन सवाल सिर्फ खुद को बचाने का नहीं है—सवाल नीति का है।
यह किसी एक सरकार, एक दल या एक व्यक्ति से बड़ा सवाल है—यह आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व का सवाल है।
राखी चौधरी का जाना एक व्यक्तिगत त्रासदी भर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—कि हम जिस राह पर बढ़ रहे हैं, वहां जिंदगी लंबी नहीं, छोटी होती जाएगी।
आज हम श्रद्धांजलि दे रहे हैं, लेकिन कल यह किसी और का नाम, किसी और का परिवार हो सकता है।
राखी, आपकी मुस्कान, आपकी जिजीविषा और आपका साहस हमेशा याद रहेगा।
आपका जाना हमें यह सोचने पर मजबूर करता है—कि क्या हम आने वाले कल को सुरक्षित करने के लिए आज कुछ बदल पाएंगे?
