मेरठ से स्पेशल रिपोर्ट | ग्राउंड रिपोर्ट
मेरठ जिले का किठौर विधानसभा क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। यहां राजनीति के समीकरण समय-समय पर बदलते रहे हैं। इस पैकेज में हम आपको 14 सितंबर 2025 की गुर्जर पंचायत की ताज़ा खबर और साथ में नीचे किठौर विधानसभा के ऐतिहासिक और राजनीतिक समीकरण का विश्लेषण एक साथ पेश कर रहे हैं। साथ ही, नीचे दिए गए वीडियो में आप इन घटनाओं और चर्चाओं का सीधा दृश्य भी देख सकते हैं।
मेरठ। किठौर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में गुर्जर समाज ने रविवार को अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा हलचल मचा दी। मुबारिकपुर स्याल गांव स्थित आश्रम में हुई इस पंचायत में किठौर क्षेत्र के 46 गांवों और दो नगर पंचायतों से हजारों की संख्या में लोग जुटे। पंचायत का आयोजन भाजपा नेता देवेंद्र गुर्जर की ओर से किया गया।
इस महापंचायत से जो सबसे बड़ा संदेश निकला, वह दो टूक था—
“अब बाहरी प्रत्याशी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होगा।”
समाज के प्रतिनिधियों ने साफ ऐलान किया कि किठौर क्षेत्र से केवल स्थानीय उम्मीदवार को समर्थन मिलेगा, लेकिन यदि कोई बाहरी उम्मीदवार लाया गया तो उसका खुला विरोध किया जाएगा।
समाज की ताकत और इतिहास की गूंज
सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मेरठ जिला हमेशा संघर्ष और बलिदान की धरती रहा है। 1857 की क्रांति में धन सिंह कोतवाल ने अंग्रेजों को ललकारा था। उसी परंपरा को याद दिलाते हुए कहा गया कि गुर्जर समाज भी संघर्ष और सम्मान से पीछे नहीं हटेगा।

किठौर के जातीय समीकरणों पर भी चर्चा हुई। यहां मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा हैं, जबकि गुर्जर और दलित लगभग बराबर की हिस्सेदारी रखते हैं। वक्ताओं ने कहा कि गुर्जर समाज हमेशा सभी जातियों और धर्मों के साथ तालमेल बनाकर चलता आया है।
देवेंद्र गुर्जर की दावेदारी और भावुक अपील
पंचायत में भाजपा नेता देवेंद्र गुर्जर ने समाज से पूछा कि क्या वह 2027 के चुनाव की तैयारी करें। हजारों लोगों ने हाथ उठाकर समर्थन दिया और उन्हें पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया।
देवेंद्र गुर्जर ने मंच से कहा—
“चाहे मेरी गर्दन कट जाए, लेकिन जिन्होंने आज मुझे सम्मान दिया है, उनकी गर्दन कभी झुकने नहीं दूंगा।”
“हमारे विधानसभा क्षेत्र का जो भी बंदा होगा, उसका हम तन-मन-धन से समर्थन करेंगे। लेकिन बाहर से आएगा तो उसका पूरा विरोध करेंगे।”
पिछली बार टिकट कटने का जिक्र
देवेंद्र गुर्जर ने कहा—
“पिछली बार मैंने विधानसभा चुनाव की तैयारी की थी, लेकिन परिस्थितियों के कारण मौका नहीं मिला। तब भी मैंने पार्टी का फैसला स्वीकार किया और भाजपा प्रत्याशी को जिताने में पूरी ताकत झोंकी।”
उन्होंने दावा किया कि मेरठ जिले की चार सीटों पर भाजपा की जीत में गुर्जर समाज की निर्णायक भूमिका रही।
“इतिहास गवाह है कि गुर्जर समाज जिसे समर्थन देता है, वही चुनाव जीतता है।”
11 सदस्यीय समिति का ऐलान
पंचायत में यह निर्णय हुआ कि एक 11 सदस्यीय समिति बनाई जाएगी, जो समाज की भावनाओं को पार्टी तक पहुंचाएगी और अन्य जातियों से तालमेल बनाएगी। साथ ही फैसला लिया गया कि ऐसे सम्मेलन लगातार होते रहेंगे। एक विशाल सम्मेलन मेरठ जिला स्तर पर भी किया जाएगा।
समाज की एकता और 2027 की तैयारी
सभा का माहौल उत्साहपूर्ण रहा। दूर-दराज़ से आए लोगों ने एक ही स्वर में समाज की एकता और राजनीतिक सम्मान की बात रखी।
देवेंद्र गुर्जर ने कहा—
“मैं गर्व से कहता हूं कि जिस समाज में पैदा हुआ, वही मेरी ताकत है। और आज समाज ने जो जिम्मेदारी दी है, उसे मैं पूरी निष्ठा से निभाऊंगा।”
इस महापंचायत से यह स्पष्ट हो गया कि किठौर में 2027 का चुनाव अब गुर्जर समाज के लिए अस्तित्व और सम्मान का सवाल बन चुका है।
किठौर की इस महापंचायत ने मेरठ की राजनीति में हलचल मचा दी है। भाजपा और अन्य दलों के लिए यह बड़ा संदेश है कि समाज ने अब अपनी रणनीति साफ कर दी है—
स्थानीय प्रत्याशी को समर्थन, बाहरी का विरोध।
यह सामूहिक निर्णय न केवल किठौर बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए समीकरण गढ़ सकता है।
गुर्जर सम्मेलन में उठे समाज और राजनीति से जुड़े सवाल
किठौर विधानसभा क्षेत्र के मुबारिकपुर स्याल गाँव स्थित आश्रम प्रांगण में 14 सितंबर को 46 गाँवों की पंचायत आयोजित हुई। इस पंचायत में गुर्जर समाज से जुड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सवाल जोरदार तरीके से उठाए गए।
शोक और शादी जैसे अवसरों पर राजनीति से परहेज़
सम्मेलन में रोबिन गुर्जर ने ने कहा कि मृत्युभोज और तेरहवीं जैसे अवसरों पर नेताओं और समाज के लोग राजनीतिक बहस से बचें। ऐसे समय पर परिवारजन पहले से ही ग़मगीन रहते हैं, और अनावश्यक चर्चाएँ उन्हें और बोझिल कर देती हैं। इसी तरह शादियों में भी राजनीति पर चर्चा न की जाए। इस पर सभी ने सहमति दी।
धार्मिक परंपराएँ और व्यक्तिगत पहल
“चाव” की परंपरा को लेकर सुझाव दिया गया कि इसे समाज पर थोपने के बजाय हर परिवार अपनी तरफ़ से शुरुआत करे। जब लोग खुद अपने परिवार के साथ पहल करेंगे, तभी यह परंपरा मजबूती से आगे बढ़ पाएगी।
मेरठ-हापुड़ लोकसभा का मुद्दा
सम्मेलन में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट के नाम और पहचान से जुड़ा उठा। वक्ताओं ने कहा कि यह क्षेत्र मूल रूप से हस्तिनापुर की ऐतिहासिक पहचान से जुड़ा था, जहाँ गुर्जर समाज की बड़ी उपस्थिति और हिस्सेदारी रही है। लेकिन राजनीतिक पुनर्गठन के दौरान समाज की पहचान को पीछे धकेल दिया गया। यही नहीं, खरखौदा विधानसभा की सीट भी खत्म कर दी गई।
गुर्जर समाज की पिछली राजनीतिक भागीदारी
याद दिलाया गया कि कभी मेरठ जिले का पंचायत अध्यक्ष गुर्जर समाज से हुआ करता था। मेरठ शहर का मेयर भी गुर्जर समाज से था। यहां तक कि हरीश पाल और अवतार सिंह भड़ाना जैसे सांसद भी समाज का प्रतिनिधित्व करते रहे। लेकिन धीरे-धीरे यह राजनीतिक भागीदारी कम होती चली गई।
बच्चों की शिक्षा पर जोर
सम्मेलन में यह बात भी उठी कि जितना समय समाज के लोग व्यापार, राजनीति और अन्य कार्यों को देते हैं, उतना ही समय उन्हें बच्चों की शिक्षा को भी देना चाहिए। बच्चों के साथ मित्रवत रिश्ता बनाने और उन्हें राजनीतिक बहस से दूर रखने की अपील की गई।
प्रेरणादायक उदाहरण
पास के ही गाँव लालपुर की बेटी का उदाहरण दिया गया, जिसने कठिन परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई के दम पर लेफ्टिनेंट बनकर पूरे देश में सातवीं रैंक हासिल की। यह शिक्षा की ताकत और समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक बताया गया।
जल और ऊर्जा संरक्षण का संदेश
पंचायत में जल और ऊर्जा बचाने का संदेश भी दिया गया। कहा गया कि गाँवों में सबसे अधिक जल का दोहन हो रहा है, इसलिए मोटर और बिजली का इस्तेमाल सावधानी से किया जाए।
समाज की एकता और राजनीतिक ताकत
वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि गुर्जर समाज की अपनी एक राजनीतिक ताकत है। यदि समाज एकजुट होकर बोले तो हर राजनीतिक दल और पद उसकी ताकत को मान्यता देंगे।
पंचायत के मुख्य मुद्दे और निर्णय
1. बाहरी प्रत्याशी का विरोध
सभा से सबसे बड़ा संदेश यह निकला—
“अब बाहरी प्रत्याशी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होगा।”
समाज ने ऐलान किया कि किठौर क्षेत्र से केवल स्थानीय उम्मीदवार को समर्थन मिलेगा, बाहरी प्रत्याशी का खुला विरोध किया जाएगा।
2. शोक और शादी जैसे अवसरों पर राजनीति से परहेज़
वक्ताओं ने अपील की कि मृत्युभोज और तेरहवीं जैसे शोक अवसरों पर राजनीतिक बहस न की जाए। परिवारजन पहले से ही ग़मगीन रहते हैं, ऐसे में राजनीति पर चर्चा उन्हें बोझिल कर देती है।
इसी तरह शादियों में भी राजनीति पर बात करने से बचने की सलाह दी गई।
3. सामाजिक परंपराओं में सुधार
पंचायत में कई सामाजिक सुधारों पर भी सहमति बनी—
- “चाव” की परंपरा को समाज पर थोपने के बजाय परिवार स्तर पर अपनाने का सुझाव।
- मृत्यु भोज (भोज भात) जैसी परंपराओं को खत्म करने की अपील।
- घोड़ी नचाने की परंपरा को बंद करने की बात।
- शादी-ब्याह में बैंड और डीजे पर रोक लगाने की सिफारिश।
यदि कोई बैंड/डीजे बजाना ही चाहे, तो उस पर “गुर्जर” शब्द कतई न लिखा जाए।
4. गुर्जर समाज की राजनीतिक भागीदारी
याद दिलाया गया कि—
- कभी मेरठ जिले का पंचायत अध्यक्ष गुर्जर समाज से था।
- मेरठ शहर का मेयर भी गुर्जर समाज से चुना गया।
- हरीश पाल और अवतार सिंह भड़ाना जैसे सांसदों ने समाज का प्रतिनिधित्व किया।
लेकिन धीरे-धीरे यह भागीदारी कम होती चली गई।
6. बच्चों की शिक्षा पर जोर
सम्मेलन में कहा गया कि जितना समय समाज व्यापार और राजनीति को देता है, उतना ही बच्चों की शिक्षा को भी देना चाहिए।
बच्चों के साथ मित्रवत रिश्ता बनाने और उन्हें राजनीतिक बहस से दूर रखने पर बल दिया गया।
7. प्रेरणादायक उदाहरण
लालपुर गांव की बेटी का उदाहरण दिया गया, जिसने कठिन हालात में पढ़ाई कर लेफ्टिनेंट बनकर पूरे देश में सातवीं रैंक हासिल की। इसे समाज के लिए शिक्षा की शक्ति और प्रेरणा का प्रतीक बताया गया।
8. जल और ऊर्जा संरक्षण
पंचायत में यह भी संदेश दिया गया कि गांवों में सबसे अधिक जल का दोहन होता है, इसलिए मोटर और बिजली का इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए।
जल और ऊर्जा बचाना आने वाली पीढ़ियों के लिए जरूरी है।
किठौर की सियासत को यूं समझें: बीजेपी के लिए 2027 में बड़ी चुनौती गुर्जर और त्यागी नेताओं के बीच फंसा पेच
गुर्जर, मुस्लिम और त्यागी नेताओं के इर्द गिर्द घूमती रही है किठौर की सियासत
किठौर विधानसभा का राजनीतिक इतिहास गुर्जर-मुस्लिम-त्यागी समीकरण के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। 1957 में ब्राह्मण समाज की श्रद्धा देवी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1962 में भी उन्होंने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। 1967 में मुस्लिम (त्यागी) समाज के मंजूर अहमद संयुक्त समाजवादी पार्टी से विजयी हुए। 1974 में गुर्जर समाज के रामदयाल सिंह ने भारतीय क्रांति दल से विधायक बनकर समाज की निर्णायक भूमिका स्थापित की। 1980 में भीम सिंह सीना कांग्रेस (I) से विधायक बने। सीना भी गुर्जर ही थे। सन 1985 में प्रभुदयाल लोकदल से विजयी हुए और समाज के भीतर नेतृत्व को मजबूत किया। 1989 में मुस्लिम (त्यागी) परवेज़ खान जनता दल से विधायक बने। इसके बाद गुर्जर समाज से ही 1993 में रामकिशन वर्मा भाजपा से विजयी हुए। साल 1996 में परवेज़ हलीम भारतीय किसान कामगार पार्टी से विधायक बने। 2002, 2007 और 2012 में शाहिद मंज़ूर समाजवादी पार्टी से लगातार विजयी रहे। 2017 में सत्यवीर त्यागी भाजपा से विधायक बने। 2022 में शाहिद मंज़ूर फिर से जीत गए। साल 2022 के चुनाव में बीजेपी ने हालांकि सत्यवीर त्यागी को ही दोबारा मैदान में उतारा पर वह जनता का भरोसा जीत न पाए।
दरअसल साल 2009 के परिसीमन ने किठौर विधानसभा सीट के समीकरण बदलकर रख दिए। खरखौदा विधानसभा खत्म हुई और उसके गुर्जर एवं त्यागी बहुल गांव किठौर में शामिल हो गए। कुछ गुर्जर बहुल गांव हस्तिनापुर सीट में चले गए। अब त्यागी दावा करते हैं कि इस सीट पर उनकी संख्या बढी है जबकि गुर्जर कहते हैं कि निर्णायक भूमिका में वो हैं त्यागी नहीं।
अब यूपी में 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं और किठौर में भी पारा चढ रहा है। बीजेपी नेता देवेंद्र गुर्जर ने गुर्जर सम्मेलन कर स्थानीय उम्मीदवार को प्राथमिकता देने की दावेदारी ठोक दी है। यूपी सरकार में उर्जा राज्य मंत्री और मेरठ दक्षिण से लगातार दो बार के विधायक डॉ. सोमेंद्र तोमर का नाम भी इस इलाके में चर्चा में है। सत्यवीर त्यागी इस सीट को 2022 में बचा नहीं पाए तो क्या बीजेपी उन पर फिर भरोसा कर पाएगी ये भी सवाल है। भाजपा के पश्चिमी यूपी के पूर्व अध्यक्ष और एमएलसी अश्वनी त्यागी का नाम भी सुर्खियों में है पर जानकार मानते हैं कि पार्टी उन्हें चुनाव में न उलझाकर फिर एमएलसी ही बनाने को तरजीह देगी। अश्वनी त्यागी इन दिनों पीएम मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस के प्रभारी हैं।
सवाल और भी गहरे हैं। क्या भाजपा इस बार मेरठ में मेरठ दक्षिण के साथ किठौर पर भी गुर्जर प्रत्याशी उतारते हुए देवेंद्र गुर्जर को हरी झंडी देगी। या फिर डॉ सोमेंद्र तोमर मेरठ दक्षिण छोड़ इस बार किठौर भेज दिए जाएंगे। जानकार मानते हैं कि ये सब कुछ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव और उनकी रणनीति पर भी निर्भर करेगा। प्रबल संभावना है कि सपा किठौर से मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर पर ही भरोसा जताए। मेरठ दक्षिण सीट पर 2012 से लगातार मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर शिकस्त खा रही सपा इस बार रणनीति में बदलाव कर सकती है। प्रबल संभावना है कि पार्टी इस सीट से दलित या गुर्जर चेहरे को मैदान में उतार दे। दलितों में पार्टी के पास योगेश वर्मा और उनकी पत्नी सुनीता वर्मा जैसे विकल्प हैं। वहीं गुर्जरों में सरधना विधायक अतुल प्रधान और मुखिया गुर्जर जैसे चेहरे हैं।
कुल मिलाकर इस बार 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव के पहले ही गोटियां बिछनी शुरू हो गई हैं। किठौर विधानसभा का चुनाव गुर्जर समाज की राजनीतिक ताकत, स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दे और मुस्लिम-महादलित संतुलन पर केंद्रित है।
किठौर विधानसभा: विधायक और समीकरण (1957–2022)
चुनाव वर्ष | विधायक का नाम | जाति/समुदाय | पार्टी | टिप्पणी/समीकरण |
1957 | श्रद्धा देवी | ब्राह्मण | कांग्रेस | पहली महिला विधायक, महिलाओं की भागीदारी |
1962 | श्रद्धा देवी | ब्राह्मण | कांग्रेस | लगातार जीत, ब्राह्मण समाज की निरंतरता |
1967 | मंजूर अहमद | मुस्लिम (त्यागी) | संयुक्त समाजवादी पार्टी | लोहिया की पार्टी के उभार का दौर |
1974 | रामदयाल सिंह | गुर्जर | भारतीय क्रांति दल | स्थानीय विकास योजनाएँ, गुर्जर निर्णायक |
1980 | भीम सिंह सीना | गुर्जर | कांग्रेस (I) | गुर्जर समाज की राजनीतिक ताकत मजबूत |
1985 | प्रभुदयाल | गुर्जर | लोकदल | नेतृत्व की धारणा मजबूत |
1989 | परवेज़ खान | मुस्लिम (त्यागी) | जनता दल | देश में सत्ता परिवर्तन की लहर का असर |
1993 | रामकिशन वर्मा | गुर्जर | भाजपा | भाजपा में गुर्जर विश्वास और नेतृत्व |
1996 | परवेज़ हलीम | मुस्लिम | भारतीय किसान कामगार पार्टी | क्षेत्रीय संतुलन |
2002 | शाहिद मंज़ूर | मुस्लिम (त्यागी) | समाजवादी पार्टी | लगातार जीत, निर्णायक भूमिका |
2007 | शाहिद मंज़ूर | मुस्लिम (त्यागी) | समाजवादी पार्टी | समाजवादी नेतृत्व की स्थिरता |
2012 | शाहिद मंज़ूर | मुस्लिम (त्यागी) | समाजवादी पार्टी | प्रदेश में सपा की लहर |
2017 | सत्यवीर त्यागी | त्यागी | भाजपा | सांप्रदायिक ध्रुवीकरण |
2022 | शाहिद मंज़ूर | मुस्लिम (त्यागी) | समाजवादी पार्टी | मुस्लिम समाज की सक्रिय भागीदारी |