स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा: स्वामी पूर्ण चंद्र आर्य

Interview

स्वतंत्रता संग्राम के अनेक वीर सेनानियों ने अपने साहस और त्याग से भारतीय इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है। ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे स्वामी पूर्ण चंद्र आर्य। उनका जन्म 13 मार्च 1900 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बूढ़पुर गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी लज्जाराम एक सम्मानित कृषक थे। उनका सन्यास पूर्व नाम पूर्ण चंद्र आर्य था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

स्वामी जी बचपन से ही मेधावी और राष्ट्रप्रेमी प्रवृत्ति के थे। उन्होंने 1920 में मेरठ से एसएलसी परीक्षा उत्तीर्ण की और पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर के रूप में चयनित हुए। लेकिन 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी त्याग दी और असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

असहयोग आंदोलन और जेल यात्रा

  • 1921 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
  • तीन महीने की जेल यात्रा के दौरान ब्रिटिश दमन का सामना किया।
  • कारावास के दौरान उनके विचार और अधिक राष्ट्रवादी बने।

विद्यालय स्थापना और सामाजिक सेवा

  • जेल से छूटने के बाद, उन्होंने हरियाणा के रोहतक जिले के खरेंटी गाँव में एक विद्यालय की स्थापना की।
  • इस विद्यालय का उद्देश्य था समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार और युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाना।

नमक सत्याग्रह और दूसरा कारावास

  • 1930 में महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में कूद पड़े।
  • उनके परिवार के सभी सदस्यों को गिरफ्तार किया गया।
  • स्वामी जी को मेरठ जेल में डाल दिया गया।
  • जेल में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को सलाम करने से इनकार कर दिया, जिससे उन पर अत्याचार किए गए।
  • विरोधस्वरूप उन्होंने भूख हड़ताल की, जिसके कारण मेरठ में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • उन्हें मैनपुरी जेल भेज दिया गया, जहाँ गांधी-इरविन समझौते के तहत 10 महीने बाद रिहाई मिली।

महिला सत्याग्रह का नेतृत्व

स्वामी जी की गिरफ्तारी के बाद उनकी वृद्ध माता, धर्मपत्नी और अन्य महिलाओं ने छोटे बच्चों को गोद में लेकर सत्याग्रह किया। यह इस क्षेत्र में महिला सत्याग्रह की पहली घटना थी।

देशव्यापी स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  • मेरठ, बागपत, हरियाणा, पंजाब, कश्मीर और हैदराबाद तक स्वतंत्रता आंदोलन को सक्रिय किया।
  • लाहौर में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के महोपदेशक बने।
  • वहीं से उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर राष्ट्र की सेवा की।
  • 1939 में आर्य प्रतिनिधि सभा के आह्वान पर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।

परिवार और सामाजिक जीवन

स्वामी पूर्ण चंद्र आर्य का विवाह 1925 में यशोदा देवी से हुआ। उनके तीन पुत्र—यशोवर्धन शास्त्री, वेद प्रकाश तोमर और डॉ. शिवराज तथा एक पुत्री शकुंतला थीं।

प्रेरणा और विरासत

स्वामी पूर्ण चंद्र आर्य का जीवन बलिदान, संघर्ष और राष्ट्रभक्ति की मिसाल है। उनके योगदान को संजोने और नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए डॉ. वीरोत्तम तोमर और डॉ. रविंद्र राणा जैसे इतिहासकारों ने उनके कार्यों पर शोध किया है।

स्वामी जी की शिक्षाएँ:

  • सत्य और अहिंसा का पालन करें।
  • राष्ट्रसेवा सर्वोपरि है।
  • शिक्षा और सामाजिक जागरूकता से ही स्वतंत्रता संभव है।

स्वामी पूर्ण चंद्र आर्य भारतीय इतिहास के उन महान नायकों में से एक हैं, जिनका योगदान सदा अमर रहेगा।

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