अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष
मेहर ए आलम ख़ान
मुख्य संपादक, ‘नर्सरी टुडे’, नई दिल्ली
सलाहकार, सिनेइंक पॉडकास्ट्स, लंदन

हर साल 12 अगस्त को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (International Youth Day) मनाती है—यह दिन संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा युवाओं के वैश्विक प्रगति में योगदान को मान्यता देने के लिए निर्धारित किया गया है। इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का विषय है “स्थानीय युवा कार्य : सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और उससे आगे”। यह विषय इस बात पर ज़ोर देता है कि किस प्रकार युवा वैश्विक सपनों को स्थानीय स्तर पर वास्तविकताओं में बदलने की अनूठी भूमिका निभाते हैं। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिवस नहीं है बल्कि यह कार्रवाई का आह्वान है। यह समझना आवश्यक है कि युवाओं में निवेश करना, भविष्य में निवेश करना है—एक ऐसा भविष्य जो सतत, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण हो। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र अक्सर दोहराता है: “युवा केवल कल के नेता नहीं हैं—वे आज के साझेदार हैं।”

जब हम अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस (IYD) 2025 की थीम “स्थानीय स्तर पर युवाओं को एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) और उससे आगे के लिए सशक्त बनाना” के तहत मनाने जा रहे हैं, भारत एक ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जहां स्थानीय स्तर पर पर्यावरणीय कार्यवाही राष्ट्रीय प्रगति को गति दे सकती है। इस वर्ष की संयुक्त राष्ट्र थीम युवाओं को वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को स्थानीय संदर्भों में अनुकूलित करने के लिए सशक्त बनाने पर जोर देती है। एक दृष्टि से यह विकेंद्रीकृत पौधशाला पहलों द्वारा पूरी तरह से प्रतिबिंबित होती है। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हुए हमें पुनः यह संकल्प लेना चाहिए कि हम युवाओं को सशक्त बनाएंगे, उन्हें आवश्यक उपकरण, अवसर और सम्मान देंगे, ताकि वे उस समाज, उस देश और उस दुनिया के सतत विकास में अपना योगदान दे सकें, जिसका वे हिस्सा हैं।

भारत एक अनूठे जनसांख्यिकीय मोड़ पर खड़ा है। यहाँ 15–29 वर्ष आयु वर्ग में लगभग 371 मिलियन (37.1 करोड़) युवा हैं, जो विश्व में सबसे बड़ी युवा आबादी है। इसी समय देश गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों—जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, जैव विविधता का नुकसान और भूमि क्षरण—का सामना कर रहा है, जो सतत विकास के लिए खतरा है। सवाल यह है कि इन दोनों वास्तविकताओं के बीच सेतु कैसे बनाया जाए? इसका उत्तर है—देश के युवाओं को पौधशालाओं और हरित उद्यमिता (Green Entrepreneurship) से जोड़ना। यह रणनीति राष्ट्रीय विकास में योगदान कर सकती है।

भारत में, जहां 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है; 70 प्रतिशत भूमि जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशील है; और 40 प्रतिशत युवा अल्परोजगार का सामना कर रहे हैं; स्थानीय पौधशालाएं सतत विकास की एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरती हैं। ये पौधशालाएं एसडीजी (सतत विकास लक्ष्यों) के कार्यान्वयन को स्थानीय स्तर पर लागू कर सकती हैं। इसके अलावा स्थान-आधारित हरित उद्यम बना सकती हैं, और समुदाय-आधारित समाधानों के माध्यम से जलवायु लचीलेपन को मजबूत कर सकती हैं।बढ़ती बेरोज़गारी और पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए पौधशालाएँ एक अनूठा और सतत समाधान प्रस्तुत करती हैं, जो इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के विषय से भी मेल खाता है। अगर हम भारतीय युवाओं को पौधशाला उद्यमिता, कृषि-वनीकरण (Agroforestry) और शहरी हरित पहल (Urban Greening) से जोड़ें तो हम रोज़गार, स्थिरता और जलवायु-लचीलापन जैसे भारत के विकास के स्तंभों को मज़बूत कर सकते हैं।पौधशालाएं एसडीजी स्थानीयकरण के लिए आदर्श केंद्र हैं। स्थानीयकृत युवा-चलित पौधशालाएं आजीविका सृजन का साधन बनती हैं और इनसे न केवल युवा बल्कि पूरा समुदाय लाभान्वित होता है। स्मार्ट शहरों में छत पौधशालाएं शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव 2-3°C कम करती हैं। जलवायु-संवेदनशील जिलों में देशी प्रजाति पौधशालाएं प्रति पौधशाला पाँच हेक्टेयर/वर्ष पुनर्स्थापित करती हैं।

इंडियन नर्सरीमेन एसोसिएशन (INA) को, जो पौधशाला व्यवसाय से जुड़े लोगों की एक राष्ट्रीय संस्था है, यह ज़िम्मेदारी निभानी होगी की किस तरह युवा-प्रेरित पौधशालाएँ भारत की प्रगति को गति दे सकती हैं, उनके आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ क्या हैं और युवाओं को हरित उद्यमिता के लिए सशक्त बनाने की ठोस रणनीतियाँ क्या हो सकती हैं। सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि मौजूदा ज्ञान और कौशल का सर्वोत्तम उपयोग कर युवाओं को बागवानी और कृषि-पर्यावरण (Agro-ecology) के विभिन्न क्षेत्रों में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाए—जैसे कलम बनाना (ग्राफ़्टिंग), जैविक खेती, जल संरक्षण आदि। इसके साथ-साथ उद्यमिता कौशल—व्यवसाय प्रबंधन, पौधों की बिक्री के लिए डिजिटल मार्केटिंग—और जलवायु अनुकूलन, जैसे सूखा-प्रतिरोधी और देशी प्रजातियों का विकास, भी सिखाया जाए।

इन कौशलों में निवेश करके भारत युवाओं को ग्रीन जॉब्स के लिए तैयार कर सकता है, जिनकी मांग वैश्विक स्थिरता प्रतिबद्धताओं के तहत तेज़ी से बढ़ने की संभावना है। साथ ही, पौधशालाएँ पर्यावरण-उद्यमिता (Eco-Entrepreneurship) के माध्यम से युवाओं की बेरोज़गारी से निपटने का प्रभावी साधन बन सकती हैं। 20–24 वर्ष के युवाओं में भारत की बेरोज़गारी दर ~43% (CMIE 2023) है। पौधशालाओं को शुरू करने की लागत कम है, लेकिन वे सरकारी एजेंसियों, ग़ैर सरकारी संस्थाओं और शहरी ग्राहकों को पौधों की बिक्री के माध्यम से स्वरोज़गार प्रदान करती हैं। ये ग्रामीण आजीविका भी उपलब्ध कराती हैं, जैसे वनीकरण परियोजनाओं के लिए पौधों की आपूर्ति। इसके अलावा ये नए मॉडल भी प्रस्तुत करती हैं—जैसे हाइड्रोपोनिक्स, वर्टिकल गार्डन और औषधीय पौधों की पौधशालाएँ। इस सच्चाई को रेखांकित करना आवश्यक है कि पौधशालाएँ रोज़गार सृजन का व्यावहारिक मार्ग हैं।
भारत ने वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने, वन क्षेत्र को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने और वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षरित भूमि की पुनर्बहाली का संकल्प लिया है। युवाओं द्वारा संचालित पौधशालाएँ इन लक्ष्यों को सीधे समर्थन दे सकती हैं, क्योंकि वे करोड़ों पौधे वृक्षारोपण, शहरी पार्कों और कृषि-वनीकरण के लिए उपलब्ध करा सकती हैं।

यहाँ कुछ प्रेरणादायक युवा-प्रेरित सफलताओं का उल्लेख करना भी आवश्यक है:
- महाराष्ट्र के “ग्रीन वॉरियर्स”:
पुणे के कुछ स्नातकों ने 2022 में सामुदायिक पौधशाला शुरू की। नगर निगम से सहयोग कर वे हर साल 10,000 से अधिक पौधे शहरी पार्कों और राजमार्गों के लिए उपलब्ध कराते हैं। उनके मॉडल से अब तक 50 से अधिक युवा-प्रेरित पौधशालाएँ राज्य में प्रेरित हुई हैं। - ओडिशा की आदिवासी युवा पौधशालाएँ:
ओडिशा वन क्षेत्र विकास परियोजना के तहत आदिवासी युवाओं को पौधशाला प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया। आज वे सरकार की वृक्षारोपण योजनाओं के लिए बाँस और फलदार पौधों की आपूर्ति कर स्थायी आय अर्जित कर रहे हैं। - बेंगलुरु के हाइड्रोपोनिक स्टार्टअप्स:
युवा टेक स्नातक AI-संचालित हाइड्रोपोनिक पौधशालाओं के माध्यम से रेस्तरां के लिए जैविक जड़ी-बूटियाँ उगा रहे हैं। उनकी सफलता साबित करती है कि कृषि आधुनिक तकनीक-आधारित और लाभकारी दोनों हो सकती है।
भारत की एक सबसे बड़ी ताकत उसकी युवा शक्ति है। अगर इन्हें पौधशालाओं के विकास में शामिल किया जाए तो यह न केवल हरित आवरण (Green Cover) को मज़बूत करेगा बल्कि रोज़गार, कौशल और एक हरित एवं समृद्ध भविष्य भी सुनिश्चित करेगा। युवाओं की ऊर्जा और हरित उद्यमिता का यह संगम भारत की जनसांख्यिकीय लाभांश को पारिस्थितिक लाभांश में बदल सकता है, जो राष्ट्रीय विकास और वैश्विक स्थिरता दोनों में योगदान देगा।

जैसा कि कहावत है: “पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय 20 साल पहले था। दूसरा सबसे अच्छा समय अभी है।” अब समय आ गया है कि भारतीय युवा सक्रिय रूप से पौधशाला क्षेत्र में भाग लें, पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा दें और अपने साथ-साथ देश के लिए भी हरित भविष्य सुनिश्चित करें।
