स्वच्छ वायु और नीले आकाश के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर विशेष
मेहर-ए-आलम ख़ान, सलाहकार, सिनेइंक पॉडकास्ट्स (लंदन) व मुख्य संपादक ‘नर्सरी टुडे’ (नई दिल्ली)
नई दिल्ली।
हर साल 7 सितंबर को विश्वभर में स्वच्छ वायु एवं नीले आकाश का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे 2019 में घोषित किया था, ताकि यह याद दिलाया जा सके कि स्वच्छ वायु कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि मौलिक मानव अधिकार है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण के कारण लगभग 70 लाख लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि तकनीकी समाधानों और स्वच्छ ऊर्जा के साथ-साथ पौधों और वृक्षों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। प्रदूषक तत्वों को सोखने और ऑक्सीजन छोड़ने की उनकी क्षमता ही उन्हें पर्यावरण का सबसे बड़ा रक्षक बनाती है।

इसी कड़ी में पौधशालाएँ (नर्सरीज़) अहम भूमिका निभाती हैं। चाहे शहरी हरित पट्टियाँ हों या वनीकरण अभियान, इन सबकी बुनियाद पौधशालाओं से तैयार पौधे ही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एक परिपक्व वृक्ष प्रतिवर्ष कई मनुष्यों को जीवित रहने लायक ऑक्सीजन प्रदान कर सकता है। पौधशालाओं में तैयार पौधे समय के साथ “ऑक्सीजन बैंक” में बदल जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी पौधशालाएँ रणनीतिक भूमिका निभा रही हैं। भारत का ग्रीन इंडिया मिशन, चीन की ग्रेट ग्रीन वॉल और यूरोपीय संघ की बायोडायवर्सिटी स्ट्रैटेजी 2030 बड़े पैमाने पर इन्हीं पर आधारित हैं। औषधीय पौधशालाएँ तुलसी, नीम और अश्वगंधा जैसे पौधों को संरक्षित करती हैं, वहीं सजावटी पौधशालाएँ परागणकर्ताओं को आकर्षित कर पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाती हैं।

शहरों में बढ़ते प्रदूषण और ‘हीट आइलैंड’ प्रभाव को कम करने में भी पौधशालाओं से प्राप्त वृक्ष उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। शोध बताते हैं कि हरे-भरे इलाकों में रहने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है और तनाव का स्तर घटता है।
रोज़गार सृजन में भी पौधशालाएँ अहम हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कई सामुदायिक पौधशालाएँ महिलाओं और युवाओं को आय व सशक्तिकरण का माध्यम बन रही हैं। साथ ही ये संस्थाएँ पर्यावरण शिक्षा और जन-जागरूकता के केंद्र भी हैं।
हालांकि, पौधशालाएँ जल की कमी, भूमि की उपलब्धता, पौधों की जीवितता दर और जलवायु की चरम स्थितियों जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इनके लिए नीतिगत समर्थन, वित्तीय प्रोत्साहन और सामुदायिक भागीदारी बेहद जरूरी है।

आज कई पौधशालाएँ उच्च तकनीकी केंद्र में बदल रही हैं। टिश्यू कल्चर, ड्रिप इरिगेशन, GIS और IoT आधारित निगरानी जैसे नवाचार उनकी दक्षता और सफलता को बढ़ा रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि स्वच्छ वायु एवं नीले आकाश का अंतरराष्ट्रीय दिवस हमें यह याद कराता है कि स्वच्छ वायु में साँस लेना जीवन के अधिकार से अलग नहीं है। पौधशालाएँ इस दृष्टि को साकार करने में अनिवार्य हैं। वे केवल वाणिज्यिक इकाइयाँ नहीं, बल्कि पारिस्थितिक जीवनरेखाएँ हैं।
